साधना के लिए कौन से स्थान का चयन करना चाहिए जिससे साधना का फल मिल सके।
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|| साधना के स्थान का चुनाव ||
साधना के लिए समुचित स्थान का चयन करना पहला कार्य है। इस सम्बन्ध में तंत्र-शास्त्र में स्पष्ट निर्देश मिलते हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि दो प्रकार के 'स्थान' होते हैं - १.प्राकृतिक , २.मानव द्वारा निर्मित ।
प्राकृतिक स्थान - प्रकृति के खुले प्रदेश में साधना का उपयोगी स्थान यदि सुलभ हो, तो वहां बैठकर साधना करने से सहज ही सिद्धि प्राप्त होती है।
१.पर्वत का शिखर-भाग, २.पर्वत का तटीय प्रदेश, ३.पर्वत की गुफा, ४.पवित्र वन (तपो-वन), ५.तुलसी वन, ६.प्रशस्त वृक्ष (वट, बिल्व, पिप्पल, आंवला आदि के नीचे), ७.पवित्र नदी, सरोवर, सागर का तट, ८.पवित्र निर्जन प्रदेश, ९.जल के मध्य में, १०.नदी-संगम प्रदेश, ११.तीर्थ-क्षेत्र।
मानव द्वारा निर्मित स्थान - १.शून्य गृह, २.गुरुदेव का घर, ३.उपवन (उद्यान), ४.गौ-शाला, ५.एक-लिंग शिवालय (जिस शिव मंदिर के पांच-कोस-दस मील दूर तक दूसरा शिवलिंग न हो), ६.देवी मंदिर, देवालय या शक्ति-पीठ, ७.भू-गर्भ (पृथ्वी के नीचे बना कमरा, ढकी हुई गुफा आदि), ८.छिद्र-रहित मण्डप के नीचे, ९.पञ्च-वटी, १०.श्मशान।
इन स्थानों का चुनाव करके साधक सहजतः अपनी साधनायें संपन्न कर सकता है।
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